नदियों ,पर्वतों झरनों और वनों से घिरा हरा-भरा हमारा झारखंड।मांदर की थाप और नागपुरी गीतों पर थिरकते यहाँ के निवासी ।ये भाग्य से ज्यादा अपने कर्म पर विश्वास करने वाले ,कड़ी मेहनत करने वाले और पक्का इरादा रखने वाले हैं । कर्मा पर्व पर वृक्ष करम ( जो कि कर्म का प्रतीक है ) की डाल की भक्ति भाव से पूजा-अर्चना करना और परिश्रम का यथोचित फल मिलनेकीकामना करना इसी बात का तो प्रतीक है ।
झारखंड राज्य के उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के मुख्यालय हजारीबाग को हजार बागों का शहर कहा जाता है। कभी यहाँ आम केहजारों बाग हुआ करते थे तथा हजारों की संख्या में बाघ भी पाएजाते थे।क्यों न हों ,ये चारों दिशाओं से वन सम्पदाओं से घिरा
हुआ जो है। जहाँ तक निगाहें उठें हरियाली ही हरियाली ।इन्हीं वनों की देन है कि यहाँ बारिश खूब होती है। सालों भर खुशगवारमौसम होता है। कभी ज्यादा गरमी नहीं पड़ती ।
शहर से 26 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय उच्च पथ 100 पर पूरब की ओर चलते हुए टाटी झरिया प्रखंड से एक किलोमीटर पहले हमेंएक वन प्रदेश मिलता है। छोटा –सा वन खंड“दुधमटिया”।दुध-मटियासखुआ के पेड़ों का घना जंगल है।इसकी विशेषता यह है ,कि प्रत्येक पेड़ लाल-पीले कच्चे धागों में लिपटा किसी पवित्र बंधन से बंधा देवतुल्य लगता है।प्रत्येक वर्ष 7 अक्टूबर को हजारों की संख्या में ग्रामीण (स्त्री,पुरुष-
बूढ़े बच्चे सभी ) ढोल ,मंजीरे लेकर गीत गाते हुए यहाँ आते और भावनाओं के फूल अक्षत चढा कर मंत्रोच्चार के साथ कच्चे धागे सेप्रत्येक पेड़ का रक्षाबंधन करते हैं ।दिन भर उत्सव का माहौल रहता है। पेड़ों को सजाया जाता है,झंडी पताके लगाए जाते हैं।स्कूली बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।गाँव की पूरी आबादी इस वन प्रदेश को सुशोभितकरती रहती है।दिन भर मेला लगा रहता है।सुबह से शामतक स्त्रियों के मधुरगीतों और बच्चों की मीठी किलकारियोंसे वन प्रांगण गुंजायमानरहता है।अब तो जिला प्रशासन और वन विभाग ने भी पूरे प्रमंडल में ऐसे आयोजनों कोमान्यता दे रखी है।
प्रकृति हमारी सदा सर्वदा हितैषी रही है।प्राणदायिनी हवा,जल भोजनऔषधि सभी के लिए हम प्रकृति पर आश्रित रहते हैं।प्राण रक्षकसंजीवनी प्रकृति की ही देन है।
रक्षाबंधन आपसी प्यार के बंधन का प्रतीक है।स्निग्ध और नि;स्वार्थ प्रेम का।फिर पेड़ों के साथ रक्षाबंधन ,ग्रामीणों की भोली-भाली आस्था का वनों के साथ अटूट रिश्ता कायम करता है।जहाँ ग्रामीण इन वनों को कभी किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुँचाने कासंकल्प लेते हैं वहीं ये पेड़ आजीवन शुद्ध वातावरण और स्वच्छ वायु प्रदान करते रहने का मौन –मूक वचन देते हैं।बारिश केदिनों में बादल जब उमड़ घुमड़ कर आते हैं ,इन वनों में झूम कर बरसते हैं। वर्तमान समय में रक्षाबंधन कर वन सम्पदा को बचाने एवं पर्यावरण की रक्षा करने का यह उदाहरण कई जगहों पर देखनेको मिलता हैं।यह प्रयास वाकई सराहनीय है।जंगलों और गाँवों में रहने वाले हमारे ग्रामीण भाई-बन्धुओं कीसरलता को धर्म के आवरण में लपेट कर हमारे वनों कोबचाने का यह विचार अनुकरणीय भी है;और यह उत्तम विचार देन है –एक सरकारी स्कूल के आदरणीय शिक्षक श्री महादेव महतो की,जिनकी बुद्धि परायणता ने बिष्णुगढ़ के क्षतिग्रस्त जंगल डहरभंगा को बचाने का संकल्प लिया।
उनका यह अनुष्ठान कारगर हुआ और वनों की रक्षा का अचूक सूत्र बना।आज आलम यह है कि जिले के 45 गाँवों में 22 हजार एकड़जंगल फिर से लहलहा उठे हैं।1995 से प्रारम्भ इस अभियान में हजारों लोग जुड़ते चले आ रहे हैं।
आप जब भी हजारीबाग से गिरिडीह बगोदर की राह जाएँ,कुछ पल दुधमटिया वन क्षेत्र के पास अवश्य रुकें। दो पल ठहर कर वहाँ कीहवा में रची बसी पवित्र भावनाओं को महसूस करें,आप अवश्य कह उठेंगे –अनूठा रिश्ता है यह !!
Dhanyawad madam itni sunder jaankari dene ke liye.
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