अनकही
कारू राम जी,आपके खाते में तो…बात पूरी करना अच्छा नहीं लगा…नजरें उठाई तो सामने 64-65 वर्ष के एक बुजुर्ग –सांवला रंग, लम्बा चेहरा, बडी-बडी आंखें, सीधा-सरल व्यक्तित्व और आंखों में न जाने क्या…कि अनायास आदर उमड आया । मैंने ‘ना” में सिर हिलाया और निकासी फार्म के साथ पासबुक वापस कर दिया…मतलब साफ था कि मांगी गई रकम खाते में नहीं थी…
हमारी शाखा (हज़ारीबाग) शहरी है, यहां न्यूनतम जमा राशि 500/=होनी चाहिए…वगैरह –वगैरह, सभी रटी-रटायी बातें हैं। सबकी सब बेमानी।यहां अधिकतम खाते पेंशनधारियों के हैं। बंधी बंधाई रकम महीने की आखिरी तारीख को जमा होती है और पहले सप्ताह में ही निकाल ली जाती है, और फिर --महीने भर इन्तजार…।
यही सत्य चित्र है, यही हकीकत है।कारू राम पता नहीं किस विभाग से रिटायर हुए हैं। उन्हें कुल 785/=पेंशन मिलता है। दो किस्तों में 700/= निकाल ले जाते हैं।शायद पिछले माह शेष राशि के साथ साथ कुछ ज्यादा ही ले गए तभी तो खाते में मात्र 35/= ही बचे हैं ॥और निकासी फार्म उन्होंने 200/= का भरा है।
मेरा ना का इशारा देखते ही लौट गए, न कोई सवाल न जिरह॥ काउंटर पर लम्बी कतार थी। शाखा से लगे 2 ए टी एम हैं, परन्तु भीड है कि कभी कम ही नहीं होती। 8 सिंगल विंडो भी हैं परन्तु ये कतारें सारा दिन ज्यों की त्यों ही दीखती हैं। कोई एक सवा घंटे के बाद सामने पुन: वही पासबुक…नजरें उठाई तो देखा वही कारू राम…इस बार फार्म में मात्र 100/= भरे गए थे, अब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ।
यदि पहली ही दफा पासबुक अपडेट करके दे देती तो बेचारे दुबारा तो नहीं परेशान होते !! मैंने खोलकर देखा तो पासबुक अपडेट थी। तो फिर…?? मेरी समझ में कुछ नहीं आया। मैंने उनकी ओर देखते हुए धीरे से कहा—ऊंहूं ! इतना भी नहीं। और थोडी ग्लानि के साथ पुन: पासबुक लौटा दिया मानों रकम के नहीं होने में मेरी ही गलती हो। कतार अब भी लम्बी थी, पर थोडी कम।
35-40 मिनट ही बीते होंगे कि कारू राम जी फिर उपस्थित हो गए।इस बार फार्म 50/= का था।वही लिखावट…वही सबकुछ। मैंने कलम नीचे रख दिया। हथेलियों पर चेहरा टिकाया और सीधे कारू राम की आंखों में देखा…कई सवाल उठ रहे थे मन में।पर ज्यों ही निगाह मिली…रोमांच हो आया।पिता की उम्र के बुजुर्ग व्यक्ति…और उनकी आंखें डबडबाई हुई।जुबान खामोश पर भावातिरेक से हिलता हुआ चेहरा…कोई शब्द नहीं ,कोई शिकायत भी नहीं, कोई याचना भी नहीं॥ पर अन्तर में उठ रहे तूफान की स्पष्ट झलक निश्छ्ल आंखों में…न जाने कौन सी आफत आन पडी थी,न जाने कौन सी ऐसी जरूरत, ऐसी मुसीबत आन पडी थी…जिससे अहं से दमकता हुआ चेहरा आहत-सा दीख रहा था…।
उन कातर अश्रु बूंदों में कुछ शब्द तैर रहे थे…कि उन्हें पैसों की जरूरत थी , सख्त जरूरत। मैं अपने मन की कचोट सह न सकी। एक पल भी विचार नहीं किया। क्या सही क्या गलत का तो ध्यान ही नहीं आया। धीरे से अपना पर्स उठाया, उसमें से 50/= का एक नोट निकालकर पासबुक के पन्नों में रखकर सामने बढा दिया। देखने वालों को एक झटके में समझ भी नहीं आया होगा कि क्या हुआ…और न ही सोचने –विचारने का समय था कारू राम के पास।
उन्होंने पासबुक थामा और लगभग दौडते हुए-से चले गए।राम जाने ऐसी क्या इमरजेंसी थी उन्हें॥ ऐसी घटना कोई पहली बार नहीं घटी थी कि बैलेंस कम होने के कारण पासबुक लौटाया जाए।परन्तु 25-26 वर्षों के कार्यकाल में मैंने ऐसा पहली बार किया। जरूरत पर किसी को 100-50 देना अलग बात है।जो भी हो।
कुछ पलों में ही सबकुछ सामान्य हो गया। कार्य चलता रहा। उस दिन महीने की 22 या 23 तारीख थी। 8-10 दिनों के बाद नया महीना शुरु हो गया।फिर पेंशन लेने वालों की कतार…हनुमान जी की पूंछ की तरह…लम्बी—अंतहीन। कोई 2 घंटे बीते होंगे कि सामने कारू राम का पासबुक आ गया।खाते में 750/= जमा थे। निकासी फार्म 350/= का भरा गया था।मैंने मुस्कुराकर सामने देखा…मतलब स्पष्ट था…पैसे आ गए खाते में। पेंशन के पैसे॥आपकी सारी उम्र के परिश्रम के पैसे।
आज चेहरे पर आंतरिक अहं की चमक…आंखों में आत्म विश्वास की झलक भी।
मैंने 100-100 के तीन और 50 के एक नोट के साथ पासबुक बढा दिया और दूसरे व्यक्ति की तरफ मुखातिब हुई। कारू राम जरा दाहिनी तरफ खिसक कर खडे हो गए। और तुरंत 50 का एक नोट निकालकर मेरी तरफ बढा दिया। बिना कुछ कहे…बिना किसी लाग लपेट के। वही हिलता हुआ चेहरा…अनगिनत भावों का मिला-जुला रंग। आंतरिक अभिमान से दीप्त।
बहुत अच्छा लगा। एक गरीब,ईमानदार,बुजुर्ग का मौन,मूक,सरल व्यवहार। एक श्रद्धेय उमर का आदरणीय व्यवहार।
मैंने कुछ नहीं कहा।कुछ कहते बना ही नहीं॥ आंखें भर आईं॥ अपने स्थान पर खडी हुई और हाथ जोड दिए। सर जरा-सा हिला दिया “ना”। और मेरी बात उन्होंने समझ ली।
पैसे वापस रख लिए और धीरे से मुड गए।मैंने इस घटना का जिक्र कभी कहीं नहीं किया।पर मेरे मन को कहीं गहरे तक छू गई यह बात।
जाने क्या बात थी-
जो न कही गई,न सुनी गई
पर कह दी गई और सुन ली गई
ज्यों की त्यों……
अद्भुत!
ReplyDeleteजिस्म में सिहरन , परन्तु ह्रदय को झंकृत करता अनुभव !
कुछ याद आ रहा है...
उसने कहा था , " जो कुछ तुम मेरे किसी भी भाई के लिए करते हो, वह तुम मेरे ही लिए करते हो!"
परमात्मा आपमें ये सामर्थ्य बनाये रखें!.....
धन्यवाद…यह बिल्कुल सच्ची घटना है…
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